Aapki Mehki Huyi Zulf Ko

आपकी महकी हुई ज़ुल्फ़ को कहते हैं घटा
आपकी महकी हुई ज़ुल्फ़ को कहते हैं घटा
आपकी मद-भरी आँखों को कँवल कहते हैं
आपकी मद-भरी आँखों को कँवल कहते हैं

मैं तो कुछ भी नहीं, तुमको हसीं लगती हूँ
इसको चाहत-भरी नज़रों का अमल कहते हैं
इसको चाहत-भरी नज़रों का अमल कहते हैं

एक हम ही नहीं...
एक हम ही नहीं, सब देखने वाले तुमको

संग-ए-मरमर पे...
संग-ए-मरमर पे लिखी शोख़ ग़ज़ल कहते हैं
संग-ए-मरमर पे लिखी शोख़ ग़ज़ल कहते हैं

ऐसी बातें ना करो...
ऐसी बातें ना करो जिनका यक़ीं मुश्किल हो

ऐसी तारीफ़ को...
ऐसी तारीफ़ को नीयत का ख़लल कहते हैं
ऐसी तारीफ़ को नीयत का ख़लल कहते हैं
आपकी मद-भरी आँखों को कँवल कहते हैं
इसको चाहत-भरी नज़रों का अमल कहते हैं

मेरी तक़दीर कि तुमने मुझे अपना समझा
मेरी तक़दीर कि तुमने मुझे अपना समझा

इसको सदियों की...
इसको सदियों की तमन्नाओं का फल कहते हैं
इसको सदियों की तमन्नाओं का फल कहते हैं
इसको सदियों की तमन्नाओं का फल कहते हैं



Credits
Writer(s): N/a Khaiyyaam, Ludiavani Sahir
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