Chadariya Jini Re Jini

कबीरा जब हम पैदा हुए
जग हँसे, हम रोए
ऐसी करनी कर चलो
हम हँसे, जग रोए

चदरिया झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी

शरीर को एक चादर के समान समझते हुए
भक्त कबीर ने लिखा है
"चदरिया झीनी रे झीनी"
ये शरीर रूपी चादर किस प्रकार बनी

कैसे इस चादर का निर्माण हुआ
अष्ट-कमल का चरखा बनाया
पाँच तत्व की पूनी
अष्ट-कमल का चरखा बनाया

पाँच तत्व की पूनी
नौ-दस मास बुनन को लागे
नौ-दस मास बुनन को लागे
मूरख मैली कीन्ही

चदरिया झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी

शरीर ने जब जन्म लिया
जब मोरी चादर बन घर आई
रंगरेज को दीन्हि
रंगरेज कौन?

गुरु के पास शिक्षा का रंग चड़ाने के लिए
इस चादर को भेजा गया
जब मोरी चादर बन घर आई
रंगरेज को दीन्हि चदरिया

रंगरेज को दीन्हि
जब मोरी चादर बन घर आई
रंगरेज को दीन्हि
ऐसा रंग रंगा रंगरे ने

ऐसा रंग रंगा रंगरे ने
के लालो लाल कर दीन्हि
चदरिया झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी

गुरु से शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद
ये जीवन आरंभ होता है
और ऐसे समय पर
एक चेतावनी, एक शिक्षा, भक्त कबीर ने दी है

चादर ओढ़ शंका मत करियो
ये दो दिन तुमको दीन्हि चदरिया
ये दो दिन तुमको दीन्हि
चादर ओढ़ शंका मत करियो

ये दो दिन तुमको दीन्हि चदरिया
ये दो दिन तुमको दीन्हि
मूरख लोग भेद नहीं जाने
मूरख लोग भेद नहीं जाने

दिन-दिन मैली कीन्हि
चदरिया झीनी रे झीनी
के राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झीनी

ध्रुव-प्रह्लाद, सुदामा ने ओढ़ी चदरिया
ध्रुव-प्रह्लाद, सुदामा ने ओढ़ी
शुकदेव ने निर्मल कीन्हि चदरिया
शुकदेव ने निर्मल कीन्हि

ध्रुव-प्रह्लाद, सुदामा ने ओढ़ी
शुकदेव ने निर्मल कीन्हि
दास कबीर
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी
दास कबीर ने ऐसी ओढ़ी

ज्यूँ की त्यूं धर दीन्हि
चदरिया झीनी रे झीनी, झीनी, झीनी, झीनी
राम नाम रस भीनी

चदरिया झीनी रे झीनी, झीनी, झीनी, झीनी
राम नाम रस भीनी
चदरिया झीनी रे झी, झीनी रे झी, झीनी रे झीनी



Credits
Writer(s): Traditional, Anup Jalota
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