Sham Bheegi Bheegi

शाम भीगी-भीगी, बदन जल रहा है
शाम भीगी-भीगी, बदन जल रहा है
होंठों की इल्तिजा ये आजा तुझे बुलाए
तेरी बेरुख़ी से दिल पर इक तीर चल रहा है
शाम भीगी-भीगी, बदन जल रहा है

घबरा के आरज़ू भी आँखों में आ रही है
घबरा के आरज़ू भी आँखों में आ रही है
आ रही है, आ रही है
बदली उदासियों की घिर-घिर के छा रही है

समझा चुके थे दिल को, अब फिर मचल रहा है
शाम भीगी-भीगी, बदन जल रहा है

समझो ना, क्यूँ खड़े हो यूँ दूर अजनबी से?
समझो ना, क्यूँ खड़े हो यूँ दूर अजनबी से?
अजनबी से, अजनबी से
मुश्किल से ये घड़ी तो माँगी थी ज़िंदगी से

अफ़सोस, ये भी लम्हा आ के बदल रहा है
शाम भीगी-भीगी, बदन जल रहा है



Credits
Writer(s): Laxmikant Pyarelal, Rajinder Krishan
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