Tod Do Ahd E Mohabbat

तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत, ये तुम्हारी मर्ज़ी
तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत, ये तुम्हारी मर्ज़ी
तुम मुझे चाहो तो अपना भी बना सकती हो
तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत...

कौन सी बात तबी'अत पे गिरा गुज़री है?
क्यूँ तुम्हें तर्क-ए-मोहब्बत का ख़याल आया है?
बस मुझे इतना बता दो कि मेरी जानिब से
किसने बद-ज़न किया? किसने तुम्हें बहकाया है?

इतनी नाराज़ क्यूँ हो, ये तो बता सकती हो
तुम मुझे चाहो तो अपना भी बना सकती हो
तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत...

मैंने कब तुमसे मोहब्बत का सिला माँगा है
प्यासी आँखों को फ़क़त ताब-ए-नज़ारा दे दो
डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत
तुम मुझे अपनी मोहब्बत का सहारा दे दो

अब भी तुम रस्म-ए-मोहब्बत को बढ़ा सकती हो
तुम मुझे चाहो तो अपना भी बना सकती हो
तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत, ये तुम्हारी मर्ज़ी
तोड़ दो अहद-ए-मोहब्बत...



Credits
Writer(s): Aish Kanwal, Maqbool, Iqbal Hussain
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