Trishna Mein Rog Hai

उत्तमङ्गगेन वंदेहं धम्ममंचदुविधंवरम्
धम्मेयो खलितोदोषो धम्मोखमतु तं मम्
...धम्मोखमतु तं मम्
...धम्मोखमतु तं मम्

तृष्णा में रोग है, दुख है
दुख से मुक्ति का मार्ग है
धम्म का बस यही सार है
बुद्ध की सीख का सार है

तृष्णा में रोग है, दुख है

आशा का संचार है ज़िंदा मन में
हो, आशा का संचार है ज़िंदा मन में
हो, फँसता जाता है...
हो, फँसता जाता है मानव हर वक्त
सख्त वो लोभ, मोह के दलदल में

हो, आशा का संचार है ज़िंदा मन में
फँसता जाता है मानव हर वक्त
सख्त वो लोभ, मोह के दलदल में

लोभ के बँधनों से छुटो
लोभ के बँधनों से छुटो
हो, मोह का ना कोई अंत है
धम्म का बस यही सार है

सम्यक दृष्टि...
सम्यक दृष्टि, सम्यक हो संकल्प
वाणी भी सम्यक...
वाणी भी सम्यक, सम्यक हो कर्मा

ओ, अनुशासित व्यायाम, आहार हो
स्मृति भी सम्यक, समाधी आसन
मार्ग यही अष्टांग, मार्ग यही अष्टांग

आचरण जो करे वो धन्य है
आचरण जो करे वो धन्य है
सुख की भी प्राप्ति फिर अनन्य है
ओ, सुख की भी प्राप्ति फिर अनन्य है

तृष्णा में रोग है, दुख है
दुख से मुक्ति का मार्ग है
धम्म का बस यही सार है
ओ, बुद्ध की सीख का सार है, सार है

ओ, सार है



Credits
Writer(s): Rajesh Dhabre
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