Khuda-E-Bartar Teri Zameen Par

ख़ुदा-ए-बरतर तेरी ज़मीं पर
ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है?
हर एक फ़त्ह-ओ-ज़फ़र के दामन पे
ख़ून-ए-इंसाँ का रंग क्यूँ है?
ख़ुदा-ए-बरतर...

ज़मीं भी तेरी है, हम भी तेरे
ये मिलकियत का सवाल क्या है?
ये क़त्ल-ओ-ख़ूँ का रिवाज़ क्यूँ है?
ये रस्म-ए-जंग-ओ-जदाल क्या है?

जिन्हे तलब है जहान भर की
उन्हीं का दिल इतना तंग क्यूँ है?
ख़ुदा-ए-बरतर...

ग़रीब माँओ, शरीफ़ बहनो को
अम्न-ओ-इज़्ज़त की ज़िंदगी दे
जिन्हें अताकी है तू ने ताक़त
उन्हें हिदायत की रोशनी दे

सरों में किब्र-ओ-ग़ुरूर क्यूँ है?
दिलों के शीशे पे ज़ंग क्यूँ है?
ख़ुदा-ए-बरतर...

क़ज़ा के रस्ते पे जानेवालो
को बच के आने की राह देना
दिलों के गुलशन उजड़ ना जाएँ
मोहब्बतों को पनाह देना

जहाँ में जश्न-ए-वफ़ा के बदले
ये जश्न-ए-तीर-ओ-तफ़ंग क्यूँ है?

ख़ुदा-ए-बरतर तेरी ज़मीं पर
ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है?
हर एक फ़त्ह-ओ-ज़फ़र के दामन पे
ख़ून-ए-इंसाँ का रंग क्यूँ है?
ख़ुदा-ए-बरतर...



Credits
Writer(s): Sahir Ludhianvi
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