Ghul Raha Hai Sara Manzar

घुल रहा है सारा मंज़र, शाम धुँधली हो गई

घुल रहा है सारा मंज़र, शाम धुँधली हो गई
चाँदनी की चादर ओढ़े, हर पहाड़ी सो गई

घुल रहा है सारा मंज़र, शाम धुँधली हो गई
चाँदनी की चादर ओढ़े, हर पहाड़ी सो गई

घुल रहा है सारा मंज़र (सारा मंज़र, सारा मंज़र)

वादियों में पेड़ हैं, अब अपनी ही परछाइयाँ
वादियों में पेड़ हैं, अब अपनी ही परछाइयाँ
उठ रहा है कोहरा जैसे चाँदनी का वो धुआँ

चाँद पिघला तो चट्टानें भी मुलायम हो गईं
रात की साँसें जो महकी और मद्धम हो गई

घुल रहा है सारा मंज़र (सारा मंज़र, सारा मंज़र)

नर्म है जितनी हवा उतनी फ़िज़ा ख़ामोश है
नर्म है जितनी हवा उतनी फ़िज़ा ख़ामोश है
टहनियों पर ओस पीके हर कली बेहोश है

मोड़ पर करवट लिए अब ऊँघते हैं रास्ते
दूर कोई गा रहा है, जाने किसके वास्ते!

घुल रहा है सारा मंज़र, शाम धुँधली हो गई
चाँदनी की चादर ओढ़े, हर पहाड़ी सो गई
घुल रहा है सारा मंज़र (सारा मंज़र, सारा मंज़र)



Credits
Writer(s): Javed Akhtar, Shankar Mahadevan
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