Samajko Badal Dalo

समाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो

समाज को बदल डालो
ज़ुल्म और लूट के रिवाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो

कितने घर हैं जिनमें आज रोशनी नहीं
कितने घर हैं जिनमें आज रोशनी नहीं
कितने तन-बदन हैं जिनमें ज़िंदगी नहीं

मुल्क और क़ौम के मिज़ाज को बदल डालो
मुल्क और क़ौम के मिज़ाज को बदल डालो

समाज को बदल डालो
ज़ुल्म और लूट के रिवाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो

सैकड़ों की मेहनतों पर एक क्यूँ पले?
सैकड़ों की मेहनतों पर एक क्यूँ पले?
ऊँच-नीच से भरा नज़ाम क्यूँ चले

आज है यही तो ऐसे आज को बदल डालो
आज है यही तो ऐसे आज को बदल डालो

समाज को बदल डालो
ज़ुल्म और लूट के रिवाज को बदल डालो
समाज को बदल डालो



Credits
Writer(s): Ravi, Ludiavani Sahir
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