Ab Mere Paas Tum Aayee Ho

अब मेरे पास तुम आयी हो, तो क्या आयी हो
अब मेरे पास तुम आयी हो, तो क्या आयी हो
मैंने माना कि तुम इक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहेर में रूह-ए-चमन आ राई हो
तल्लत-ए-मेहर हो, फ़िरदौस की बरनाई हो
बिनते मेहताब हो गर्दू से उतर आयी हो

मुझसे मिलने में अंदेशा-ए-रुश्वाई है
मुझसे मिलने में अंदेशा-ए-रुश्वाई है
मैंने खुद अपने किए की सज़ा पायी है

अब मेरे पास तुम आयी हो, तो क्या आयी हो

उन दिनों मुझपे क़यामत का जुनूँ तारी था
सर पे सरसारी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था
माहपारों से मोहब्बत का जुनूँ तारी था
शहरी यारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था

बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फ़रियादें, जिगर, दोज़, मेरा नाला-ए-ज़ार
सिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुई मेरी गुफ़्तार
मैं के खुद अपने मज़ाक-ए-तरबागू का शिकार

वो गुदाज़े दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ?
वो गुदाज़े दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ?
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ?

अब मेरे पास तुम आयी हो, तो क्या आयी हो



Credits
Writer(s): Majaz, Jagjit Singh
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