Sham-E-Gham Kuchh

शाम-ऐ-ग़म कुछ उस निगाह-ऐ-नाज़ की बातें करो।
बेखुदी बढ़ती ही चली है राज़ की बातें करो।।

ये सुकूत-ऐ-नाज़ ये दिल की रगों का टूटना।
ख़ामोशी में कुछ शिकस्त-ऐ-साज़ की बातें करो।।

कुछ कफ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा।
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ऐ-परवाज़ की बातें करो।।

नक़हत-ऐ-ज़ुल्फ़ें परीशां दास्तान-ऐ-शाम-ऐ-ग़म।
सुबहो होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो।।

शाम-ऐ-ग़म कुछ उस निगाह-ऐ-नाज़ की बातें करो।
बेखुदी बढ़ती ही चली है राज़ की बातें करो ।।

शाम-ऐ-ग़म कुछ उस निगाह-ऐ-नाज़ की बातें करो...

।।.देओल.।।



Credits
Writer(s): Firaq Gorakhpuri, Jagjit Singh
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