Ab Kya Misaal Doon

अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की?
इंसान बन गई है किरण माहताब की
अब क्या मिसाल दूँ ...

चेहरे में घुल गया है हसीं चाँदनी का नूर
आँखों में है चमन की जवाँ रात का सुरूर
गरदन है एक झुकी हुई डाली, डाली गुलाब की
अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की?
अब क्या मिसाल दूँ...

गेसू खुले तो शाम के दिल से धुआँ उठे
छू ले कदम तो झुक के ना फिर आसमाँ उठे
१०० बार झिलमिलाए शमा, शमा आफ़ताब की
अब क्या मिसाल दूँ...

दीवार-ओ-दर का रंग, ये आँचल, ये पैरहन
घर का मेरे चराग़ है बूटा सा ये बदन
तस्वीर हो तुम ही मेरे जन्नत के, जन्नत के ख़ाब की
अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की?
इंसान बन गई है किरण माहताब की
अब क्या मिसाल दूँ...



Credits
Writer(s): Majrooh Sultanpuri, Roshan
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