Kabhi To Khul Ke Baras

कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हू
मैं एक ख्वाब सही आपकी अमानत हू
मुझे संभाल के रखिएगा जिस्म-ओ-जान की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
कभी तो सोच के वो शख्स किस कदर था बुलंद
जो बिच्छ गया तेरे कदमो मे आसमान की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब्रे-ऐ-मेहेरबान की तरह

बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत
बुला रहा है मुझे फिर किसी बदन का बसंत
गुज़र ना जाए ये रुत भी कही खिज़ां की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकान की तरह
कभी तो खुल के बरस अब के मेहेरबान की तरह



Credits
Writer(s): Prem Warwartani, Jagjit Singh
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