Chaudhvin Raat Hai

चौदहवीं रात है...
चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना
हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं

जी धड़कता है...
जी धड़कता है बहुत, चाँद दिखाएँ कैसे?
शर्म के मारे दुपट्टे में छुपा करते हैं
चौदहवीं रात है...

मैंने इज़हार मोहब्बत का किया है, लेकिन
मैंने इज़हार मोहब्बत का किया है, लेकिन
तू भी वो कह दे जो महबूब कहा करते हैं

जी धड़कता है...
जी धड़कता है बहुत, चाँद दिखाएँ कैसे?
शर्म के मारे दुपट्टे में छुपा करते हैं
चौदहवीं रात है...

इश्क़ की ये बात तो चुपके से कही जाती है
इश्क़ की ये बात तो चुपके से कही जाती है
इतने चुपके से कि हम-तुम ही सुना करते हैं

चौदहवीं रात है...
चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना
हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं
जी धड़कता है...

तू ग़ज़ल है या कविता या फ़साना दिल का?
तू ग़ज़ल है या कविता या फ़साना दिल का?
रात और दिन तेरी आँखों को पढ़ा करते हैं

जी धड़कता है...
जी धड़कता है बहुत, चाँद दिखाएँ कैसे?
शर्म के मारे दुपट्टे में छुपा करते हैं
चौदहवीं रात है...

यूँ ना पढ़िए, मेरी आँखे कि झुक जाती हैं
यूँ ना पढ़िए, मेरी आँखे कि झुक जाती हैं
इन्हीं आँखों में कहीं आप बसा करते हैं

चौदहवीं रात है...
चौदहवीं रात है, अब चाँद दिखा दे अपना
हम कई दिन से तेरी छत को तका करते हैं

जी धड़कता है बहुत, चाँद दिखाएँ कैसे?
शर्म के मारे दुपट्टे में छुपा करते हैं
चौदहवीं रात है...



Credits
Writer(s): Salahuddin Pervez
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