Karoon Na Yaad Magar Kis Tarah Bhulaoon Use - Original

करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
करूँ ना याद...

वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद

मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ, फिर भी गले लगाऊँ उसे
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
करूँ ना याद...

ये लोग तज़्किरे करते हैं अपने लोगों के
ये लोग तज़्किरे करते हैं अपने लोगों के

मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
करूँ ना याद...

जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है, फ़राज़
जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है, फ़राज़

अजब नहीं कि अगर याद भी ना आऊँ उसे
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
करूँ ना याद, मगर किस तरह भुलाऊँ उसे?



Credits
Writer(s): Ahmed Faraz, Ghulam Ali Sh
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