Samjhi Thi Ki Ye Ghar Mera Hai

समझी थी कि ये घर मेरा है
मालूम हुआ मेहमान थी मैं
हो, जिन्हें अपना-अपना कहती थी
हो, उन सब के लिए अनजान थी मैं

इस तरह ना मुझ को ठुकराओ
इक बार गले से लग जाओ
हाए, मैं अब भी तुम्हारी हूँ, लोगों
रूठो ना अगर नादान थी मैं

तुम शाद रहो, आबाद रहो
अब मैं तुम सब से दूर चली
हाए, परदेस बनी हैं वो गलियाँ
जिन गलियों की पहचान थी मैं



Credits
Writer(s): Ravi, Ludiavani Sahir
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