Yeh Natak Kavi Likh Gaye Kalidas

ये नाटक कवि लिख गए कालिदास
(ये नाटक कवि लिख गए कालिदास)

कहीं पे तपोवन की भूमि के पास
किसी मृग का पीछा जो करते हुए तकी सुंदरी एक कुश्यंत ने
शिकारी का मन हो गया ख़ुद शिकार
उसे भा गई उस चमन की बहार

लगती थी वो कोई अप्सरा
उसका था नाम शकुंतला (शकुंतला, शकुंतला)
एक कली थी वो जो चटक गई
भँवरे के संग भटक कई

प्रितम को मन में बसा लिया
गंधर्व व्याह रचा लिया
जब सेज सज गई प्रीत से
जब सेज सज गई प्रीत से
मन ने कहा मनमीत से

"मोहे छोड़ तो ना जाओगे?"
"मोहे छोड़ तो ना जाओगे?"
हो, रसिया, मन बसिया
"पिया, लेके जिया मोहे छोड़ तो ना जाओगे?"

सगरी नगरी के तुम हो राजन
डरती हूँ मैं ये सोच के, साजन
मोहे भूल तो ना जाओगे
पिया, छोड़ तो ना जाओगे?

बनकी रानी के वो गीत गाते हुए
राजा वापस नगरिया को जाते हुए
कित अँगूठी निशानी उसे दे गया
प्रेम की एक कहानी उसे दे गया

जागते वक़्त भी सोई रहती थी वो
सैयाँ के ध्यान में खोई रहती थी वो
...खोई रहती थी वो

एक दिन द्वार पे आया एक महर्षि
"कोई है? कोई है?", उसने आवाज़ दी
प्यार की, हाय, क़िस्मत है कितनी ख़राब
जब मिला ना अतिथि को कोई जवाब
दे दिया, दे दिया उसने निर्दोष को ये श्राप

"जा, तू खोई है जिसके लिए इस तरह
भूल जाए तुझे इस तरह
जिस तरह भूल जाती है सुबह गई रात को
भूल जाता है पागल कही बात को"



Credits
Writer(s): Anand Bakshi, Kudalkar Laxmikant, Pyarelal Ramprasad Sharma
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