Kokh Ke Rath Mein

कोख के रात में मुझे
रख कर चलती थी
कितना खुश था मैं मा
जब मैं घबराया
तब तू अपनाया
तेरी चुनरी ही साया था मा

मेरे राग-राग में
तेरा नाम है मा
तू ही मेरे दिल की साँस हो मा

सपनों को खोए हैं
अपनो को खोए हैं
इनको इंसाफ़ मिलता नही
खून भी बह गया
चैन भी उडद गया
दर मिटाने वेल कोई नही

तुझी को इनके खुदा
बनके रहना है
तुझको करता हूँ मैं यकीन



Credits
Writer(s): Ravi Basrur, Nagendra Prasad
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