Insaaf Ke Maron

इंसाफ़ के मारों को रोने ना कभी देना, या रब
शैतान की सत्ता धरती पे होने ना कभी देना, या रब

आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ओ, आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ना जाने किस आग में ये जल रहा है आदमी

खो गई इंसानियत है आज के इस दौर में
खो गई इंसानियत है आज के इस दौर में
खो गई इंसानियत है आज के इस दौर में
(दौर में, दौर में)

जाने किस नक्शेकदम पे चल रहा आदमी
आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ओ, आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ना जाने किस आग में ये जल रहा है आदमी

दर्द-ए-ग़म किसको सुनाएँ इस ज़माने में कहाँ?
ओ, दर्द-ए-ग़म किसको सुनाएँ इस ज़माने में कहाँ?
दर्द-ए-ग़म किसको सुनाएँ इस ज़माने में कहाँ?
(में कहाँ, में कहाँ)

लूटने की ख़ातिर खुद ही लुट रहा है आदमी
आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ओ, आदमी ही आदमी को छल रहा है, आदमी
ना जाने किस आग में ये जल रहा है आदमी



Credits
Writer(s): Anand Raj Anand, Laxmi Narain Pandey
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