Sheesha Ho Ya Dil Ho

शीशा हो या दिल हो...
शीशा हो या दिल हो, आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है, टूट जाता है, टूट जाता है

लब तक आते-आते हाथों से सागर छूट जाता है
छूट जाता है, छूट जाता है
शीशा हो या दिल हो, आख़िर टूट जाता है

काफ़ी बस अरमान नहीं, कुछ मिलना आसान नहीं
दुनिया की मजबूरी है, फिर तक़दीर ज़रूरी है

ये दो दुश्मन हैं ऐसे, दोनों राज़ी हों कैसे
एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है
रूठ जाता है, रूठ जाता है
शीशा हो या दिल हो, आख़िर टूट जाता है

बैठे थे किनारे पे, मौजों के इशारे पे
बैठे थे किनारे पे, मौजों के इशारे पे
हम खेले तूफ़ानों से, इस दिल के अरमानों से

हम को ये मालूम ना था, कोई साथ नहीं देता
कोई साथ नहीं देता, माँझी छोड़ जाता है
साहिल छूट जाता है, छूट जाता है, छूट जाता है
शीशा हो या दिल हो, आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है, टूट जाता है, टूट जाता है
शीशा हो या दिल हो...

दुनिया एक तमाशा है, आशा और निराशा है
थोड़े फूल हैं, काँटे हैं, जो तक़दीर ने बाँटे हैं

अपना-अपना हिस्सा है, अपना-अपना क़िस्सा है
कोई लुट जाता है, कोई लूट जाता है
लूट जाता है, लूट जाता है
शीशा हो या दिल हो, आख़िर टूट जाता है
टूट जाता है, टूट जाता है, टूट जाता है

लब तक आते-आते हाथों से सागर छूट जाता है
छूट जाता है, छूट जाता है
शीशा हो या दिल हो...



Credits
Writer(s): Laxmikant-pyarelal, Anand Bakshi
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