Manmani Se Hargiz Na Daro

Hmm, मनमानी से हरगिज़ ना डरो, कभी शादी ना करो
मनमानी से हरगिज़ ना डरो, कभी शादी ना करो

मर्ज़ी है, अरे, आज कहीं बाहर खाना खाएँ
वो कहेंगी, "नहीं साहब, ठीक आठ बजे घर वापस आ जाए"
किताब लिए हाथ में आप चैन से बैठे हैं
मेम साहब पूछेंगी, "क्यों जी, हमसे रूठे हैं?"

कभी किसी भी नारी से कर लो दो बातें
वो कहे, "इन्हीं से होती है क्या छुप के मुलाक़ातें?"
अजी तौबा, बेवकूफ़ी की है शादी, इंतहा
हर औरत अपने सोचे, औरों की नहीं परवाह

क्यों, ठीक नहीं कहा मैंने!

जो जी में आए वो करो, कभी शादी ना करो
मनमानी से हरगिज़ ना डरो, कभी शादी ना करो

ज़रा सोचिए, आराम से आप ये जीवन जी रहे हैं
पसंद का खा रहे, पसंद का पी रहे हैं
अच्छा-भला घर है आपका
लेकिन क्या करें! आपसे जुदा है शौहर बेगम साहब का

आते ही कहें, "सुनिए जी, हर चीज़ को बदलो"
पहले परदे, फ़िर sofa, फ़िर अपना हुलिया बदलो
अजी, माना तन्हाई से कभी दिल घबराएगा
जीवनसाथी की ज़रूरत महसूस कराएगा
लेकिन इस घबराहट में जो शादी कर बैठे वो उम्र भर पछताएगा

जीते जी, अरे भाई, ना मरो, कभी शादी ना करो
मनमानी से हरगिज़ ना डरो, कभी शादी...
ओ, कभी शादी, हाँ, कभी शादी-, ना बाबा ना



Credits
Writer(s): Khanna Amit Jawaharlal, Nagrath Rajesh Roshan
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