Roz-E-Awwal

रात में जब भी मेरी आँख खुले
कुछ ज़रा दूर टहलने के लिए
नंगे पाँव ही निकल जाता हूँ आकाश उतर के
कहकशाँ छूके निकलती है जो एक पंगडंडी
अपने पिछवाड़े के संतूरी सितारे की तरफ़

दूधिया तारों पे पाँव रखता चलता रहता हूँ यही सोच के मैं
कोई सैय्यारा अगर जागता मिल जाए कहीं
एक पड़ोसी की तरह पास बुला ले शायद और कहे
"आज की रात यहीं रह जाओ
तुम ज़मीं पर हो अकेले, मैं यहाँ तन्हा हूँ"

रोज़-ए-अव्वल ही से आवारा हूँ, आवारा रहूँगा
चाँद-तारों से गुज़रता हुआ बंजारा रहूँगा
रोज़-ए-अव्वल ही से आवारा हूँ, आवारा रहूँगा
चाँद-तारों से गुज़रता हुआ बंजारा रहूँगा

चाँद पे रुकना, आगे ख़ला है
Mars से पहले ठंडी फ़िज़ा है
चाँद पे रुकना, आगे ख़ला है
Mars से पहले ठंडी फ़िज़ा है

एक जलता हुआ, चलता हुआ सैय्यारा रहूँगा
चाँद-तारों से गुज़रता हुआ बंजारा रहूँगा
रोज़-ए-अव्वल ही से आवारा हूँ, आवारा रहूँगा

उलकाओं से बच के निकला
Comet हो तो पंख पकड़ना
उलकाओं से बच के निकला
Comet हो तो पंख पकड़ना

नूरी रफ़्तार से कायनात से मैं गुज़रा करूँगा
चाँद-तारों से गुज़रता हुआ बंजारा रहूँगा
रोज़-ए-अव्वल ही से आवारा हूँ, आवारा रहूँगा

(आवारा रहूँगा)
(आवारा रहूँगा)



Credits
Writer(s): Gulzar, Ust. Amjad Ali Khan
Lyrics powered by www.musixmatch.com

Link