Dost Ghamkhwaari Mein Meri

दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ुन ना बढ़ जावेंगे क्या

हज़रत-ए-नासेह 'गर आवें दीदा-ओ-दिल फर्श-ए-राह
हज़रत-ए-नासेह 'गर आवें दीदा-ओ-दिल फर्श-ए-राह
कोई मुझको ये तो समझा दो कि समझावेंगे क्या

'गर किया नासेह ने हमको क़ैद (अच्छा! यूँ सही)
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जावेंगे क्या

ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं, ज़ंजीर से भागेंगे क्यूँ
हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा, ज़िंदाँ से घबरावेंगे क्या

हैं अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उलफ़त, असद
हैं अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उलफ़त, असद
हमने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या



Credits
Writer(s): Jagjit Singh Dhiman
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