Aye Zulfe-E-Pareshaan

ए ज़ुल्फ़-ए-परेशान ए हयात अब तो सवर जा
ए ज़ुल्फ़-ए-परेशान ए हयात अब तो सवर जा
दिन खत्म हुआ, आ गई रात अब तो सवर जा
गैरों की बनी जाती हैं बात अब तो सवर जा
दीवानों की हो जाए ना मात अब तो सवर जा
ए ज़ुल्फ़-ए-परेशान ए हयात अब तो सवर जा

आईने से अब आँख मिलाई नहीं जाती
कट जाए पर गर्दन तो झुकाई नहीं जाती
जिस दर ने तुम्हे इज्ज़त-ओ-तौकीर अता की
जिस दर ने तुम्हे खिल्लत-ओ-जागीर अता की
जिस दर ने तुम्हे एक नई तक़दीर अता की
जिस दर ने तुम्हे अज़मत-ओ-तामीर अता की
अता की

क्या तुम ये दो रंगी जहां देख सकोगे?
उस दर पे फिरंगी का निशाँ देख सकोगे?



Credits
Writer(s): Rahi Masoom Raza, Muzaffar Ali, Ustad Shafqat Ali Khan
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