Sahi ek qadam

अँधेरा है देखा, पर ऐसा नहीं
ऐसा सख़्त, ऐसा सर्द, ऐसा दर्द
ख़तम हुई कहानी, लौ बुझ गई
ले अँधेरे में आख़िर हो गई ज़र्द

हम दोनों का ये साथ क्यूँ टूट गया?
हाथ से हाथ ये है छूटा क्यूँ?
ऐ ग़म, मेरा दम भी घुट रहा है
पर दिल मेरा कहता है, सुन ले तू

खो गई है डगर, चलते जा तू मगर
बस उठा सही एक कदम

दिन कहाँ गया? बस रात है
रात क्या, दिन है क्या, क्या कहूँ?
तू ही तो था किनारा, अब कौन है?
तेरे बिना बता मैं क्या करूँ

कटे कैसे सफ़र संग ना जो हमसफ़र?
है उठाना सही एक कदम
तू कदम से ज़रा एक कदम तो मिला
तू उठा सही एक कदम

डगमगाए रास्ता, गिर ना जाना तू कहीं
बाँध के बस हौसला उठा कदम, बढ़ा कदम
बस अब रुकना नहीं

चलते जा तू वहाँ, रोशनी दिखे जहाँ
और उठा सही एक कदम
मिल भी जाए मंज़िल अगर
क्या मिल गया जो खो गया
वो मेरा आसमाँ, मेरा घर?

फिर भी चलते जा, आगे बढ़ते जा
और तू उठा कदम एक सही



Credits
Writer(s): Robert Lopez, Kristen Anderson-lopez
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