Kabhi Kudh Pe Kabhi Halat

देखी ज़माने की यारी
बिछड़े सभी, बिछड़े सभी बारी-बारी

(सरल मन के इंसान रफ़ी साहब)
(बहुत सुरीले थे)
(ये मेरी खुशकिस्मती है)
(की मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए)

(वो हर तरह के गाने इस खूबी से गाते थे)
(की गाना ना समझने वाले भी)
(वाह! वाह! कर उठते थे)
(ऐसे गायक बार-बार जन्म नहीं लेते)

कभी खुद पे
कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना आया
कभी खुद पे...

कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो, हर एक बात पे रोना आया
बात निकली तो, हर एक बात पे रोना...

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको
हम तो समझे थे...
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको

क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया?
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया?
कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना...

किसलिए जीते हैं हम
किसलिए जीते हैं हम, किसके लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कभी खुद पे, कभी हालात पे रोना आया
कभी खुद पे...



Credits
Writer(s): Jaidev, N/a Sahir
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