Hazaaron Khwaahishein Aisi

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं, लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले

ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे से उठा, ज़ालिम
ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे से उठा, ज़ालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही क़ाफ़िर-सनम निकले

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब, और कहाँ वाइ'ज़
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब, और कहाँ वाइ'ज़

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले



Credits
Writer(s): Mirza Ghalib, Jagjit Singh
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